रीवा जिले में महिला उद्यमिता एवं स्वरोजगारमूलक योजनाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन

 

दिव्या त्रिपाठी

अतिथि विद्वान (वाणिज्य), शा. कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सतना (.प्र.)

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू

 

सारांश:-

किसी भी राष्ट्र के विकास के लिये उद्यमिता अतिआवश्यक तत्व है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि कोई भी देश उपलब्ध मानव संसाधनों का पूर्ण उपयोग करके ही आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। चूकिं मानव का आधा भाग महिलाएं होती है। इसलिये कोई राष्ट महिलाओं की सहभागिता के बिना आर्थिक विकास का सपना पूरा नही कर सकता है इसलिये प्रत्येक राष्ट में आर्थिक विकास की गति को प्रोत्साहित करने में महिलाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है। जहां तक भारत का प्रश्न है यहां पर आदिकाल से महिलाएं उपेक्षित रही है उनका कार्यक्रम का दायरा घर परिवार तक ही सीमित रहा है। सत्यता यह है कि महिलाओं के अपने घर परिवार तक सीमित रहने के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। आज उद्यमिता के क्षेत्र में महिलाएं प्रबंध, संचालन सहभागिता के क्षेत्र में तीव्र गति से सफलता प्राप्त कर रही है। भारत की सामाजिक मान्यताओं के अनुसार महिला का स्थान एवं कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक ही सीमित है, किन्तु आदिकाल से ही वह पुरुषों से आवश्यकता पड़ने पर पीछे नहीं रही। विकसित देशों में महिलाओं पुरुषों के साथ बिना भेदभाव के कार्य करती रहती है, जबकि भारत जैसे विकासशील देश में प्रयासरत है। शिक्षा प्रशिक्षण एवं आवश्यक दिशा निर्देश जैसे-जैसे महिलाओं में विकसित हो रहा है। क्रमशः कृषि, पशुपालन के अतिरिक्त औद्योगिक एवं तृतीयक क्षेत्रों में भी महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़ी है।

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू  महिला उद्यमिता, स्वरोजगारमूलक योजना, भारतीय अर्थव्यवस्था।

 

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से गांव और खेती पर टिकी है। हर जगह महिला ही सबसे ज्यादा कार्य में लगी रहती है फिर भी किसी को पता नही कि अर्थव्यवस्था में महिलाओं का क्या योगदान है? पढ़-लिखकर विकास की दौड़ में खड़ी हुई महिलाएँ अब घर की चारदिवारी से कामकाज की दुनिया में शामिल हो रही हैं। बदली हुई सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों में महिलाओं को शिक्षा और रोजगाार के अवसर आसानी से मिलने लगे है। जिसके कारण उनके लिये विकास के दरवाजे खुले है। राष्ट्र निर्माण आर्थिक विकास में महिलाओं का योगदान काफी महत्व रखता है।

 

महिलाओं में समानता की भावना विकसित करने एवं चेतना जागृत करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1975 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष की घोषणा की गई। आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र मे ंमहिलाओं की भागीदारी देखी जा सकती है। फिर भी भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की आकांक्षाओं को सामाजिक बंधन के कारण साकार रूप नहीं मिल सका है। आर्थिक तंगी के कारण महिलाओं को मानसिक श्रम के अलावा शारीरिक श्रम भी करने को बाध्य होना पड़ता है, जिसके लिये उनकी अशिक्षा, प्रशिक्षण और दिशा निर्देश का अभाव है।

 

भारत में सबसे अधिक महिलाएँ कृषि और खनन जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में काम करती है। कृषि के साथ अन्य आर्थिक क्षेत्रों में भी महिलाओं की सहभागिता बढ़़ रही है। महिला श्रम मानवीय समाज का महत्वपूर्ण अंग है। जिसके माध्यम से समाज के सांस्कृतिक मूल्यों का निर्वहन होता है और आर्थिक संरचना की निर्माण प्रक्रिया प्रस्फुटित होती है। ऐतिहासिक विकास के साथ-साथ महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति और जीवन शैली में अंाशिक सुधार हुआ है। भारतीय समाज में महिलाओं के आर्थिक परिस्थितियों का निरूपण करने के लिये आवश्यक है कि संपूर्ण उत्पादन संरचना में महिला श्रम और उसकी सहभागिता को विवेचन किया जाए। गोरे का कथन महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होने लिखा हे कि परिवार में स्त्री के छोटे दर्जे का संबंध आर्थिक कार्यो से उसके अलग रखे जाने से है।

 

भारत सरकार ने महिला उद्यमिता को परिभाषित करते हुए स्पष्ट किया है कि महिला के अधिपत्य एवं नियंत्रण वाली कोई भी संस्था जिसका कम से कम पूंजी का 51 प्रतिशत लाभ महिला को प्राप्त हो तथा संस्था द्वारा उपलब्ध रोजगार का 51  प्रतिशत महिलाओं को प्राप्त हो तो इस संस्था को महिला उद्यमिता से संबंधित माना जा सकता है।

महिलाएं परिवार की धुरी होती है, उन्हे आर्थिक स्वावलंबन प्रदान करने और विकास में हिस्सेदारी बनाये रखने के लिये उद्यमिता के क्षेत्र में प्रवेश करना अंत्यत आवश्यक है उद्यमिता के क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता निश्चित रूप में भारत के औद्योगिक आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध होगी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 1210854977 है इसमें महिलाओं की जनसंख्या करीब 58.65 करोड़ है। .प्र. की कुल जनसंख्या 72626809 है जिसमें महिलाएं  35014503 है। महिलाओं की इस विशाल जनसंख्या को अनदेखा कर देश एवं प्रदेश के आर्थिक समृद्धि की कल्पना नही की जा सकती है। मानवीय संसाधन के इस बडे भाग को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक हर दृष्टि से समर्थ करके ही विकास के लक्ष्यों को पाया जा सकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार 59.24 प्रतिशत महिलाएं साक्षर है। यह आंकडा 1971 में 22 प्रतिशत तथा 1991 में 39 प्रतिशत था। 31 महिलाएं 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिये चुनी गई जबकि 2007 में यह आंकडा 18 प्रतिशत तक सीमित था। 2014 में हुये आम चुनाव में 12.15 प्रतिशत महिलाएं बतौर सांसद चुनी गई। अब तक चुनी गई महिला सांसदो में 66 महिला सांसद की यह सबसे बड़ी संख्या है। आज महिलायें प्रत्येक क्षेत्र में अपने को साबित कर रही है। आज महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये एवं देश के आर्थिक विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी बहुत आवश्यक हो गई है सरकार महिलाओं के प्रोत्साहन के लिये समय-समय पर विशेष योजनायेें भी बनाती है।

 

‘‘महिलाओं की सृजनात्मक ऊर्जा विभिन्न सहायता प्रेरणात्मक योजनाओं से आर्थिक विकास की नई दिशा का दिग्दर्शन कराती है।‘‘ महिलाओं के लिये विशिष्ट प्रेरणायें योजना महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को देखते हुये तथा महिलाओं की उद्योग/स्वरोजगार के क्षेत्र में अधिकाधिक भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा केवल महिलाओं हेतु कुछ विशिष्ट योजनायें प्रतिपादित की जाती है। प्रेरणात्मक मार्गदर्शन सहायता तथा अनुदान कार्यक्रमों से बदलाव भी आया है।

 

 

उद्देश्य:-

स्वाधीनता के 70 वर्ष बीत जाने पर भी महिला उद्यमिता का विकास वांछित तीव्रता से नहीं हुआ है इस कमी का कारण क्या है ? अतीत में हुई कमियों को पूर्ण करने के लिये क्या किया जाना चाहिए? इस शोध में इन्ही सब बातों पर चर्चा की गई है। राष्टीय राज्य एवं ग्राम स्तर पर महिला उद्यमिता के उन्नयन तथा सामाजिक, आर्थिक, शेक्षणिक एवं संस्थापक अवरोधों को पर करने के लिये इस क्षेत्र में निरंतर शोध की आवश्यकता है।

                                                     महिला स्वरोजगार मूलक योजनाओं से लाभान्वित हितग्राहियों का तुलनात्मक अध्ययन करना।

                                                     महिला स्वरोजगार मूलक योजनाओ के संचालन में आने वाली समस्याओं का विश्लेषण करना।

                                                     महिला स्वरोजगार मूलक योजनाओं में समस्या के सुधार हेतु उचित सुझाव देना।

                                                     रीवा जिले की कुल आबादी में निम्न आय वर्ग का विस्तृत विश्लेषण करना।

                                                     महिला स्वरोजगार मूलक योजनाओं हेतु सरकार द्वारा प्रदान किए गए अनुदानों की व्याख्या करना।

                                                     महिला स्वरोजगार मूलक योजनाओं से सम्बन्धित वैधानिक पहलुओं को सामने लाना।

                                                     महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक स्थिति और समाज में उनकी हैसियत को उठाने के लिये आर्थिक आत्मनिर्भरता के साधन के रूप में विकसित करना।

                                                     महिलाओं को उद्यमीय जीवन अपनाने की दशा में उनके सामने आने वाली परेशानियों का पूर्वाभास कराना।

                                                     महिला उद्यमियों की क्षमता, दक्षता तथा गुणों का विकास करने, उनकी व्यवसायिक श्रृंखला को मजबूत करने हेतु सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों द्वारा बनाई गई योजनाओं का अध्ययन करना।

 

शोध प्रविधि:-

शोध या अन्वेषण किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए किया जाता है। ज्ञान की किसी भी शाखा में ध्यानपूर्वक नये तथ्यों की खोज के लिए किये गये अन्वेषण या परिक्षण को अध्ययन कहते है। ज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य अपरिहार्य है।

शोध कार्य में महिला उद्यमिता एवं स्वरोजगारमूलक योजनाओं से सम्बन्धित वास्तविक एवं विश्वसनीय आकड़ो को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं कार्य स्थल पर जाकर मूल स्त्रोतो से एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े महिला उद्यमिता एवं स्वरोजगारमूलक योजनाओं की समस्या से संबंधित विभिन्न प्रकाशित- अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदनों आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी, एवं इंटरनेट आदि का भी आकड़ें एवं विषय वस्तु से संबंधित स्टडी मटेरियल एकत्र करने में प्रयोग किया गया है।

 

उपकल्पना:-

इस शोध पत्र में निम्न उपकल्पनाएॅ ली गयीं है -

1.                                                    महिलाओं की शिक्षा का विस्तार होने से उद्यमिता के प्रति जागरूकता आयी है।

2.                                                    महिलायें अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सजग हुई है और समाज में उद्यमिता के जरियें विशिष्ट स्थान बनाने की ललक उनमें पैदा हुई है।

3.                                                    महिला उद्यमि पुरूषों की तुलना में उच्च कोटि की प्रबंधकीय क्षमता वालीं होती है।

4.                                                    गृह कार्य के प्रति समर्पण का उन भाव उद्योग के क्षेत्र में भी वैसा ही बना रहता है।

5.                                                    जिले मंे महिला उद्यमी मनोवृत्ति का अभाव है।

6.                                                    महिला उद्यमियों को ऋण एवं अन्य सुविधाओं की प्राप्ति हेतु कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

 

महिला उद्यमी के बढ़ते कदम (भारतीय परिवेश में) जिस व्यवसाय में महिलाओं का स्वामित्व, प्रबंध और नियन्त्रण होता है उसे महिला उद्यमी कहते हैं कि यदि देश की समृद्धि, संस्कृति, आर्थिक स्थितिा का अध्ययन करना है तो पहले उस देश की महिलाओं का अध्ययन करना चाहिए यदि महिलायें सुखी-सम्पन्न समृद्ध हैं तो देश भी उतना ही सुखी-सम्पन्न समृद्ध होगा। बड़ी-बड़ी कम्पनीज के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद से लेकर संस्थाओं के प्रबंध, संचालन को महिला उद्यमी खूबी निभा रही है, कुछ ऐसे ही महिला उद्यमी के बारे में विशेष जानकारी निम्न है- (विशेष रूप से भारतीय परिवेश में)

विनीता वाली:-

ब्रिटानिया इण्डस्ट्रीज की मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ कारोबार की दुनिया में शीर्ष पर है। इकोनोमिक्स टाइम्स की तरफ से 2009 में उन्हें विजनेश वीमन आॅफ ईराक के खिताब से भी नवाजा गया है।

 

चन्द्रा कोचर:-

जन्म 17 नवम्बर 1961 एम.बी.., एम.. (मैनेजमेंट स्टडी) मुम्बई, एम.डी., सी... आई.सी.आई.सी.आई. बैंक, भारत। चन्द्रा कोचर को फोब्र्स पत्रिका ने दुनिया की सौ सर्वाधिक शक्तिशाली महिलाओं में से माना है।

 

किरण एम शों:-

जन्म 23 मार्च 1953 (बेंगलोर) देश की एक मात्र बाॅयोटेक क्वीन। विश्व मानचित्र पर बायोटेक्नोलाॅजी के क्षेत्र की एकमात्र महिला है। किरण एम शाॅ का मानना है कि क्षमता विजन हो तो महिला पुरूष के भेद समाप्त हो जाते हैं।

 

शिखा वर्मा:-

एम.डी. सी..., एक्सिस बैंक, बैंक को ऊँचाईयों पर पहुँचाने में शिखा वर्मा की कड़ी मेहनत लगन साफ दिखती है।

 

इसके साथ ही साथ हम अन्य आँकड़े देखते हैं कि शिक्षा, व्यवसाय, बैंक, विनिर्माण, चिकित्सा, पर्यावरणविद्, आदि क्षेत्र में भी महिलाएँ उभरकर सामने रही हैं। राजस्थान में ही सलाना 3 से 30 लाख रूपये तक महिला सी.. अपना बेहतर वेतन पा रही है। धीरे-धीरे महिलाएँ आत्मनिर्भर हो रही है एवं राष्ट्र के विकास में सहयोगी बन रही है।

 

तथ्यों का सारणीयन विश्लेषण एवं व्याख्या:-

शोधार्थी द्वारा किया गया कोई भी शोघ कार्य सही अर्थो में तभी प्रभावी होते है, जब शोधार्थी द्वारा उस समस्या की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जाये। इसके लिये यह आवश्यक है कि शेाधार्थी द्वारा शेाध अध्ययन मेें उपयोग किये गये समस्त शेाध उपकरण द्वारा प्राप्त जानकारियों को व्यवस्थित क्रम में सारणीबद्ध किया जाये।

 

 

शोध क्षेत्र में रीवा जिले के महिला उद्यमिता एवं स्वरोजगारमूलक योजनाओं एवं आर्थिक विकास हेतु शेाधार्थी ने कुछ शोध उपकरणों की सहायता ली है, जिसके द्वारा एकत्रित तथ्यो का सारणीयन, विश्लेषण एवं व्याख्या द्वारा वस्तु स्थिति की जानकारी प्रस्तुत की गयी है। जो इस प्रकार है-

 

रीवा जिले में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की स्थिति:-

प्रदेश के अन्य जिलों की भाॅति रीवा जिले में भी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम 1 अप्रैल 2008 से संचालित है। यह वास्तव में 31.03.2008 तक दो योजनाओं प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम का मिश्रित स्वरूप है।

 

 

जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र रीवा से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी विगत पाॅच वर्षो के दौरान 226 में 213 हितग्राहियों द्वारा स्वरोजगार सम्बन्धी लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों की स्थापना जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र रीवा के माध्यम से स्थापित कर चुके है। जिनमें से 799.21 लाख रूपये की आर्थिक मदद बैंकों के माध्यम से प्रदाय की जा चुकी है। विगत पाॅच वर्षो की लक्ष्य प्राप्ति को यदि देखा जाय तो अभी तक निर्धारित भौतिक लक्ष्यों में से 65.92 प्रतिशत औसत लक्ष्य प्राप्त किया जा चुका है। इसी प्रकार वित्तीय प्रतिपूर्ति की लक्ष्य 95.03 रहा है।

 

दीन दयाल रोजगार योजना:-

योजना का उद्देश्य:-

उद्योग सेवा एवं व्यवसाय के क्षेत्र में केवल नवीन इकाइयों/गतिविधियों के माध्यम से स्वरोजगार स्थापना को प्रोत्साहन देने हेतु बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से लक्ष्य निश्चित कर ऋण उपलब्ध कराना एवं मार्जिन मनी की सहायता अनुदान के रूप में देना।

 

प्राप्त पाँच वर्षो के आकड़ो से स्पष्ट है कि शासन द्वारा जिले में रखे गयें 579 भौतिक लक्ष्य मे से मात्र 1317 भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति हो पाई है, जबकि वित्तीय लक्ष्य एवं पूर्ति पूरे 50.81 लाख रूपये ही है।

 

महिला उद्यमिता की समस्यायें:-

1.                                                    देश का सामाजिक ढाँचा परम्परागत एवं महिला उद्यमियों के प्रति कठोर, संवेदनहीन है।

2.                                                    सामान्यतः महिलाओं में अपने आप निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है।

3.                                                    भारतीय महिला उद्यमियों की प्रमुख समस्या भारतीय पुरूषों की दोहरी मानसिंकता है।

4.                                                    पुरूष श्रमिको एवं कर्मचारियेां के साथ काम कर पाना।

5.                                                    महिला उद्यमी कभी-कभी नवीनतम तकनीक से पूर्णतः जानकारी नहीं ले पाती है जिससे उत्पादन लागत में वृद्धि हो जाती है।

6.                                                    भारत में महिलाआंे की साक्षरता का प्रतिशत पुरूष की तुलना मंे कम है शिक्षा के अभाव में वह तकनीकी ज्ञान एवं विपणन के सम्बन्ध में सजग नहीं रह पाती जिसका विपरीत प्रभाव उनके व्यवसाय के विकास पर पड़ता है।

7.                                                    महिला उद्यमियों को सामान्यतः ऋण की प्राप्ति में अनेक कठिनाओं का सामना करना पड़ता है।

 

सुझाव:-

किसी भी योजना के सफल क्रियान्वयन एवं संचालन हेतु बेहतर प्रबंध का होना अत्यन्त आवश्यक है प्रबंधकीय नियंत्रण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग मानव संसाधन होता है अपने शोध के दौरान मैने पाया कि शासन की योजनाओ को यथार्थ रूप में परिणित करने का दायित्व जिला पंचायत के सचिव की है जबकि सचिव के पास जिला पंचायत का अत्यधिक कार्य होता है अतः शासन को यह पहल करना चाहिये कि महिला उद्यमिता ज्यादा से ज्यादा सशक्त हो, क्योकि महिला उद्यमिता के सशक्त होने से अपने आप ही कई समस्याये कम हो जायेगी।

 

1.                                                    महिला उद्यमियों की समस्याओं के समाधान के लिये महिला सशक्तिकरण के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

2.                                                    महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिये औद्योगिक परिवेश को बदलना होगा। साथ ही महिला उद्यमियों को विभिन्न प्रकार की रियायतें देनी चाहिए तथा कुछ विशिष्ट उद्योगो को महिला उद्यमियों के लिये आरक्षित कर देना चाहिए।

3.                                                    महिला उद्यमियों को कम ब्याज दर शाख सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

4.                                                    महिला उद्यमियों को श्रेष्ठ प्रबन्धक बनाने के लिये प्रबन्धकीय शिक्षा आवश्यक है। अतः महिलाओं के लिये प्रबंधकीय एवं व्यवसायिक शिक्षा का विस्तार किया जाना चाहिए।

 

निष्कर्श -

आज देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी की है। प्रत्येक पढ़ा लिखा युवक/युवतियों का उद्देश्य शिक्षा पश्चात रोजगार प्राप्त करना होता है। देश के प्रत्येक शिक्षित वर्ग को शासकीय नौकरी नही दी जा सकती है। इसका प्रमुख कारण है, शासकीय पदों का सीमित होना। ऐसी स्थिति मे देश मे स्वरोजगार के अवसर विकसित किये जा रहे है, जिससे देश के प्रत्येक नागरिक कों रोजगार प्राप्त हो सके तथा आत्मसम्मान की जिन्दगी जी सके।

 

भारत का वास्तविक आर्थिक विकास ग्रामीण विकास पर आधारित है, स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय ग्रामों के सर्वागींण विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से अनेक विकास कार्यक्रम अपनाये गये है।

 

शासन द्वारा संचालित विभिन्न रोजगार योजनाओं मे से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम, मध्यप्रदेश स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अतिरिक्त स्वरोजगार प्रदाय करने वाली प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम , दीनदयाल रोजगार योजना, रानी दुर्गावती स्वरोजगार योजना, मुख्य मंत्री पिछड़ा वर्ग स्वरोजगार योजना को शोध प्रबंध का विषय बनाया गया, और शोध प्रबंध को उक्त योजनान्तर्गत वित्तीय प्रबंध रोजगार दो भागों मे विभक्त कर परिणाम प्राप्त किया गया है।

हमारे देश की चार राज्यों की मुख्यमंत्री भी महिला हैं। व्यापार, व्यावसाय, बैंक आदि बड़ी-बड़ी संस्थाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। महिला उद्यमी बनकर आत्मनिर्भर एवं देश के विकास में पुरूषों के बराबर सहभागी बन रही है। महिला उद्यमियों के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक दृष्टिकोण से बड़े बदलाव की सोच रखनी चाहिए। उनको समानता का अधिकार केवल संविधान में होकर व्यवहारिक भी होनी चाहिए तभी महिला उद्यमि स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकती है और अपने परिवार देश के विकास में भागीदारी निभा सकती है।

 

संदर्भ ग्रन्थ सूची -

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2.   सिंह बी. राजेन्द्र, ग्रामों का आर्थिक पुनरूधर, साहित्य सम्मेलन प्रयोग 1930

3.   सिंह निगम, भारतीय ग्राम्य अर्थशास्त्र, नवयुग साहित्य सदन आगरा 1971-72

4.   दन्त सुन्दरय, भारतीय अर्थव्यवस्था, एस.चन्द्र एवं क्र. न्यू दिल्ली 2009

5.   शर्मा वीरेन्द्र प्रकाश, रिसर्च मेथडोलांजी, पंचशील प्रकाशन जयपुर 2004

6.   आर.. दुबे, आर्थिक विकास एवं नियोजन, नेशनल पब्लिेशर्य हाउस नई दिल्ली

7.   जैन, डाॅ. एम.के., शोध विधियाँ,यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली, 2006

8.   डाॅ. चतुर्भुज मामोरिया भारत का आर्थिक समस्याएँ, साहित्य भवन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूट्स 2007-08

9.   डाॅ. अग्रवाल के.बी. - उद्यमिता विकास।

10.  प्रसाद भगवान - एन्टरप्राइजेज फार वूमेन सोशल वेलफेयर।

11.  डाॅ0 तिवारी अंशुजा, डाॅ. तिवारी संजय- महिला उद्यमिता, ओमेगा पब्लिकेन्स दिल्ली।

12.  उद्यमिता समाचार पत्र,

13.  मध्यप्रदेश संदेश।

14.  जिला उद्योग केन्द्र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट, रीवा (.प्र.)

15.  दैनिक समाचार, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस, पत्रिका।

 

 

 

 

 

Received on 07.09.2018                Modified on 18.09.2018

Accepted on 26.09.2018            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):333-338.